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राज्य सेवा परीक्षा में गोलमाल फर्जी विकलांगता का सर्टिफिकेट नौकरी पाने वाले कि हुई शिकायत

कहते हैं कागज कभी मरते नहीं है। एक न एक दिन खुलासा हो ही जाता है। ऐसे फर्जी कागजों के दम पर जो नौकरी पाते हैं। वे जिले के कुछ लोगों को अपना आका बना ...

Kumar Narayanam

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कहते हैं कागज कभी मरते नहीं है। एक न एक दिन खुलासा हो ही जाता है। ऐसे फर्जी कागजों के दम पर जो नौकरी पाते हैं। वे जिले के कुछ लोगों को अपना आका बना करके सोचते हैं कि पूरा जिला मैनेज हो गया है। लेकिन जब खुलासा होता है तो पैरों तले की जमीन खिसक जाती है। प्रदेश में ऐसे कई मामले हैं और ऐसे कई जिले हैं जहां ऐसे फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर राज्य सरकार को धोखा देकर की नौकरी पाने वाले सीना तानकर नौकरी कर रहे हैं। नंबर उनका भी आएगा। लेकिन अभी के ताजा मामला मध्य प्रदेश के गुना जिले का है।

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गुना जिले के आरोन में महिला एवं बाल विकास विभाग में एक बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। प्रभारी सीडीपीओ (बाल विकास परियोजना अधिकारी) के पद पर तैनात अतिराज सिंह सेंगर पर फर्जी विकलांगता प्रमाण-पत्र के आधार पर नौकरी पाने का गंभीर आरोप सामने आया है। इस मामले के उजागर होने से जिले में प्रशासनिक भ्रष्टाचार पर सवाल खड़े हो गए हैं।

शिकायत के अनुसार, अतिराज सिंह सेंगर ने 2013 में राज्य सेवा परीक्षा के लिए 60 प्रतिशत श्रवण बाधित (सुनने में असमर्थता) का फर्जी विकलांगता प्रमाण-पत्र ग्वालियर में बनवाया। इस फर्जी प्रमाण-पत्र के आधार पर उन्होंने परीक्षा पास की और नौकरी हासिल की।
पिछले छह वर्षों से यह आरोन में महिला एवं बाल विकास विभाग में प्रभारी सीडीपीओ के पद पर कार्यरत हैं।अतिराज सिंह सेंगर के खिलाफ यह मामला तब सामने आया जब कलेक्टर की जनसुनवाई में शिकायत दर्ज कराई गई। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि इन्होंने फर्जी विकलांगता प्रमाण-पत्र का उपयोग कर न केवल नौकरी हासिल की, बल्कि कई योग्य उम्मीदवारों को इस पद से वंचित किया।

शिकायत में मांग की गई है कि सेंगर के विकलांगता प्रमाण-पत्र की भोपाल मेडिकल बोर्ड से जांच कराई जाए ताकि सच्चाई का पता चल सके।इस फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद जिले में प्रशासनिक हलकों में हलचल मच गई है। शिकायतकर्ता और स्थानीय नागरिकों ने जिला प्रशासन से इस मामले में सख्त कार्रवाई की मांग की है।अगर आरोप सही साबित होते हैं, तो यह न केवल प्रशासनिक भ्रष्टाचार का मामला होगा, बल्कि इससे कई योग्य उम्मीदवारों के साथ अन्याय भी हुआ होगा।

शिकायतकर्ता का कहना है कि फर्जी प्रमाण-पत्र का यह मामला प्रशासनिक व्यवस्था की खामियों को उजागर करता है।
इस मामले की भोपाल मेडिकल बोर्ड से जांच कराई जाए ताकि प्रमाण-पत्र की सत्यता का पता चल सके।दोषी पाए जाने पर कड़ी प्रशासनिक कार्रवाई होनी चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं पर रोक लग सके।

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