उमरिया कांग्रेस के नेताओं की दूरी शीर्ष नेतृत्व के प्रति अविश्वास या आंतरिक कलह?

21 अगस्त को उमरिया जिले में कांग्रेस के नवनिर्वाचित जिलाध्यक्ष विजय कोल का आगमन एक महत्वपूर्ण राजनीतिक क्षण था, जिसे ... .

उमरिया कांग्रेस के नेताओं की दूरी शीर्ष नेतृत्व के प्रति अविश्वास या आंतरिक कलह?
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21 अगस्त को उमरिया जिले में कांग्रेस के नवनिर्वाचित जिलाध्यक्ष विजय कोल का आगमन एक महत्वपूर्ण राजनीतिक क्षण था, जिसे संगठन सृजन कार्यक्रम के अंतर्गत नई ऊर्जा और दिशा देने के रूप में देखा जा रहा था। लेकिन इस कार्यक्रम में जिले के पूर्व जिलाध्यक्षों और नगर पालिका के कांग्रेस पार्षदों की अनुपस्थिति ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

यह घटना केवल एक स्वागत रैली तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व विशेषकर राहुल गांधी और प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी के निर्णयों पर स्थानीय नेताओं के विश्वास की कमी को भी उजागर करती है। विजय कोल का चयन संगठनात्मक मजबूती और सामाजिक संतुलन को ध्यान में रखकर किया गया निर्णय माना जा रहा था।

नेताओं की अनुपस्थिति संकेत क्या है?

कार्यक्रम में किसी भी पूर्व जिलाध्यक्ष, नगर पालिका के कांग्रेस पार्षद या मुख्य धारा के जिला स्तरीय नेताओं की सार्वजनिक अनुपस्थिति यह दिखाता है कि या तो इन नेताओं को निर्णय प्रक्रिया में विश्वास नहीं था, या फिर वे संगठन में अपनी अनदेखी से नाराज़ हैं। इससे संगठन में गुटबाजी की आशंका प्रबल होती है।

इस मामले में जब कांग्रेस जिलाध्यक्ष विजय कोल से बात की गई तो उन्होने कहा कि जिले सभी जेष्ठ श्रेष्ठ कांग्रेस नेताओं के आशीर्वाद से ही मुझे काम करने का मौका मिला है।कुछ व्यस्तताओं के कारणों से कार्यक्रम में शामिल नही हो पाए होंगे।आने वाले सभी कार्यक्रमों में सभी की सहभागिता रहेगी।

विजय कोल ने भले ही इसे व्यक्तिगत व्यस्तता का मामला बताया हो, लेकिन यह सिर्फ संयोग नहीं हो सकता कि एक भी प्रमुख नेता इस कार्यक्रम में नहीं पहुंचा। राजनीति में प्रतीकात्मक उपस्थिति भी संदेश देती है और इस मामले में अनुपस्थिति ही संदेश बन गई।

सृजन या संघर्ष?

राहुल गांधी द्वारा शुरू किया गया “संगठन सृजन कार्यक्रम” कांग्रेस की नई पीढ़ी को जिम्मेदारी सौंपने और जमीनी कार्यकर्ताओं को नेतृत्व में लाने का प्रयास है। लेकिन अगर शीर्ष नेतृत्व द्वारा नियुक्त व्यक्ति को स्थानीय स्तर पर समर्थन नहीं मिलता, तो यह कार्यक्रम सिर्फ कागज़ी कवायद बनकर रह जाएगा।हालांकि यह स्थिति उमरिया जिले सहित मध्यप्रदेश के कई जिलों में है।

उमरिया की स्थिति खासतौर पर चिंताजनक है क्योंकि जिले की दोनों विधानसभा सीटों पर कांग्रेस 25 वर्षों से वनवास काट रही है। ऐसे में संगठन में बदलाव होने के बाद यह वनवास खत्म होगा या वनवास का दौर आने वाले समय मे जारी रहेगा।

भाजपा की मजबूती और कांग्रेस की कमजोर कड़ी

बीते दो दशकों से भाजपा की पकड़ इस क्षेत्र में मजबूत रही है। इसका एक कारण कांग्रेस की आंतरिक कलह और नेतृत्व संकट भी रहा है। यदि कांग्रेस अपने ही नेताओं के बीच संवाद और विश्वास कायम नहीं कर पाती, तो वह जनता के बीच कैसे एकजुटता और मजबूती का संदेश दे पाएगी?

यदि विजय कोल को वास्तव में संगठन को मजबूत करना है, तो उनका पहला लक्ष्य सभी गुटों को एक मंच पर लाना इनकी पहली और बड़ी चुनौती होगी।

Sanjay Vishwakarma

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