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स्वतंत्रता दिवस पर नदारद रही RTO उमरिया,नही निकाली गई तिरंगा यात्रा, जिलेभर में उठे सवाल

स्वतंत्रता दिवस पर नदारद रही RTO उमरिया,नही निकाली गई तिरंगा यात्रा, जिलेभर में उठे सवाल
— स्वतंत्रता दिवस पर नदारद रही RTO उमरिया,नही निकाली गई तिरंगा यात्रा, जिलेभर में उठे सवाल

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उमरिया । जिलेभर में 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर विभिन्न विभागों द्वारा तिरंगा यात्रा और ध्वजारोहण कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनमें आम नागरिकों से लेकर अधिकारी-कर्मचारी तक बड़े उत्साह के साथ शामिल हुए। जिला प्रशासन के नेतृत्व में तमाम विभागों ने देशभक्ति का परिचय देते हुए अपने-अपने स्तर पर राष्ट्रीय पर्व को गरिमा के साथ मनाया। लेकिन इस पूरे आयोजन में क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (RTO) उमरिया की अनुपस्थिति चर्चा का विषय बन गई।

विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, न तो RTO उमरिया स्वतंत्रता दिवस पर जिले में उपस्थित नही रहीं। यह लापरवाही तब और अधिक स्पष्ट दिखाई दी जब अन्य सभी विभागों ने प्रशासन के निर्देशों के अनुरूप तिरंगा यात्रा में भागीदारी सुनिश्चित की, वहीं RTO विभाग ने न केवल अनुपस्थित रहकर अपनी जिम्मेदारियों से किनारा किया, बल्कि विभाग द्वारा तिरंगा यात्रा का आयोजन न कर राष्ट्रीय पर्व की गरिमा को भी ठेस पहुँचाई।

गौर करने वाली बात यह है कि जिले के संवेदनशील कलेक्टर, जो स्वयं शोक की स्थिति में थे फिर भी उन्होंने अपने कर्तव्यों से पीछे न हटते हुए स्वतंत्रता दिवस पर जिलेभर के आयोजनों में सक्रिय भागीदारी निभाई। ऐसे में RTO अधिकारी की गैरमौजूदगी और विभाग की निष्क्रियता प्रशासनिक अनुशासन पर प्रश्नचिन्ह खड़े करती है।

जब इस विषय में अपर कलेक्टर (विकास) अभय सिंह ओहरिया से संपर्क किया गया तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा, “जिले के सभी विभागों को तिरंगा यात्रा आयोजित करने के आदेश जारी किए गए थे। आपने जो जानकारी दी है, उसके आधार पर हम जांच कराएंगे कि RTO विभाग ने तिरंगा यात्रा निकाली या नहीं।

इस पूरे प्रकरण के बाद जिलेभर में सवाल उठने लगे हैं कि क्या RTO जैसे संवेदनशील विभाग को स्वतंत्रता दिवस जैसे महत्वपूर्ण अवसरों पर जवाबदेही से मुक्त माना जा सकता है? क्या ऐसे अधिकारी, जो राष्ट्रीय पर्वों पर भी अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराते, उन्हें जिले में उच्च पदों पर बने रहना चाहिए?

स्थानीय नागरिकों व सामाजिक संगठनों का मानना है कि राष्ट्रीय पर्व केवल औपचारिकता नहीं बल्कि देशभक्ति, सार्वजनिक सहभागिता और प्रशासनिक प्रतिबद्धता का प्रतीक होते हैं। ऐसे में किसी भी सरकारी विभाग की उदासीनता न केवल आमजन की भावनाओं को ठेस पहुँचाती है, बल्कि सरकारी मशीनरी की साख पर भी असर डालती है।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि जिला प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाता है। क्या आरटीओ विभाग से जवाब-तलबी की जाएगी या फिर यह मामला भी अन्य अनदेखे मामलों की तरह दबा दिया जाएगा?

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