बांधवगढ़ पिहरी विवाद: विश्वप्रसिद्ध बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व एक बार फिर विवादों में है। इस बार मामला शिकार नहीं बल्कि जंगल से पिहरी (जंगल की घास) तोड़ने का है। प्रबंधन ने 12 ग्रामीणों को वन्यजीव संरक्षण कानून की धाराओं में गिरफ्तार कर जेल भेजा, जिसके बाद मामला गरमा गया है। खास बात यह कि इस कार्यवाही के विरोध में भाजपा और कांग्रेस दोनों दल बाँधवगढ़ प्रबंधन के खिलाफ खड़े दिख रहे हैं।
राजनीतिक मोर्चाबंदी
भाजपा जिलाध्यक्ष आशुतोष अग्रवाल ने घोषणा की है कि 1 सितंबर को पीड़ित परिवारों और ग्रामीणों के साथ कलेक्टर धरणेन्द्र कुमार जैन से मुलाकात कर कार्रवाई का विरोध करेंगे। वहीं कांग्रेस जिलाध्यक्ष विजय कोल ने आरोप लगाया कि गरीब आदिवासियों को मामूली पिहरी लेने पर अपराधी बना दिया गया। कांग्रेस ने 3 सितंबर को पनपथा परिक्षेत्र वन कार्यालय का घेराव करने का ऐलान किया है।
स्थानीय लोगों में भी आक्रोश है। उनका कहना है कि पिहरी तोड़ने वाले ग्रामीणों को शिकार की धाराओं में जेल भेजना अत्यधिक कठोर कार्रवाई है, जबकि बांधवगढ़ टाईगर रिज़र्व के खितौली कोर में छोटा भीम के शिकारी साल भर बाद भी पकड़ से दूर हैं।
क्या है मामला
बांधवगढ़ प्रबंधन के मुताबिक मानसून गश्त के दौरान पतौर परिक्षेत्र के कोर इलाके में ग्रामीणों को मोटरसाइकिल सड़क किनारे खड़ी कर कोर ज़ोन में अवैध प्रवेश कर पिहरी तोड़ते हुए और वन्य प्राणियों का पीछा करते देखा गया। आरोपियों से पिहरी और छह मोटरसाइकिल जब्त की गईं और 12 लोगों को जिला न्यायालय उमरिया में पेश किया गया। अदालत ने उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया।
उठ रहे सवाल
मामले पर सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि ग्रामीणों पर धारा 9 सहित कई गंभीर धाराएं लगाई गईं, जबकि विशेषज्ञों का कहना है कि पिहरी तोड़ने या अवैध प्रवेश जैसे मामलों में हल्की धाराएं लगाई जानी चाहिए थीं।अगर प्रबंधन अवैध प्रवेश को लेकर सख्त ही होना चाहता था तो ये धाराएं प्रासंगिक थी,लेकिन आरोप है कि पंचनामा बदलकर धाराएं बढ़ाई गईं ताकि जमानत मुश्किल हो।
इसके अलावा यह सवाल भी उठ रहा है कि जब SDO भूरा गायकवाड़ ने खुद ग्रामीणों को वन्यजीवों का पीछा करते देखा, तो मौके से चले क्यों गए? संवेदनशील स्थिति में उनका वहां से हटना कार्यवाही की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है।
प्रबंधन का पक्ष
इस मामले में फील्ड डायरेक्टर अनुपम सहाय का कहना है कि आरोप-प्रत्यारोप चलते रहेंगे, लेकिन विभाग का काम अवैध प्रवेश रोकना और वन्यजीवों की सुरक्षा देखना है। उन्होंने बताया कि आने वाले महीनों में हाथी और बाघों की मानव बस्तियों से टकराव की आशंका है, इसलिए सख्ती जरूरी है।
पुराने घाव हुए हरे
यह विवाद इसलिए भी तूल पकड़ रहा है क्योंकि पिछले साल खितौली कोर जोन में बाघ “छोटा भीम” के फंदे में फंसकर घायल होने के बाद भोपाल वनविहार मौत का मामला अब तक लोगों के जेहन में ताजा है। तब प्रबंधन की लापरवाही पर सवाल उठे थे, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। छोटा भीम के शिकारी आज भी पकड़ में नही आए।स्थानीय लोगों का कहना है कि असली शिकारी छूट जाते हैं, जबकि घास-पत्ते तोड़ने वाले गरीब ग्रामीण जेल भेजे जा रहे हैं।
अब आगे क्या
अब सबकी निगाहें 1 और 3 सितंबर पर टिकी हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। देखना यह होगा कि जिला प्रशासन इस विवाद को कैसे संभालता है और क्या ग्रामीणों को न्याय मिल पाता है या मामला राजनीतिक कार्यक्रमों की भेंट चढ़ जाएगा।